बकरी पालन की जानकारी

Goat Farming In Hindi: भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में बकरी पालन से बहुत लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं और जब से हाइब्रिड प्रजाति की बकरियां लोगों को पालने की लिए मिली हैं तब से उनकी आमदनी में काफी इज़ाफ़ा हुआ है क्योंकि हाइब्रिड प्रजाति की बकरे-बकरियां बहुत तेजी से अपना वजन बढ़ाते हैं और इनका मांस भी बहुत स्वादिष्ट होता है तो लोगों की बीच इनकी मांग में भी तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है और बकरी पालन का महत्त्व भी बढ़ गया है।
हाइब्रिड क्या है ?

हाइब्रिड शब्द एक लेटिन शब्द है जो हाइबिडा से आया है इसका उपयोग क्रॉस शब्द के लिए किया जाता है। आप जानते ही होंगे कि जानवरों और पौधों में आज कई प्रकार कि वेरायटी आपको देखने को मिलती है ये सब हाइब्रिड से ही संभव हो पाया है। एक ही प्रजाति के अंदर क्रॉस से कई प्रकार के हाइब्रिड देखने को मिलते हैं जिनका उद्देश्य गुणवत्ता में सुधार करना होता है।
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जैसे -सिंगल क्रॉस हाइब्रिड दो सच्ची ब्रीड के बीच क्रॉस से पैदा होता है और डबल क्रॉस हाइब्रिड में दो सिंगल क्रॉस हाइब्रिड के साथ क्रॉस कराया जाता है तो वहीँ ट्रिपल क्रॉस हाइब्रिड सिंगल हाइब्रिड और थ्री-वे हाइब्रिड के बीच क्रॉस का परिणाम है तो वहीँ टॉप क्रॉस हाइब्रिड में उच्च गुणवत्ता वाले नर और निम्न गुणवत्ता वाली मादा का क्रॉस कराया जाता है।
बकरी पालन का महत्त्व

बकरी का पालन कम लागत में एक अच्छी आय के स्रोत का साधन है। बकरियों में सबसे अच्छी बात होती है कि वह हर प्रकार के मौसम और परिस्तिथि में अपने-आपको ढाल लेती हैं। बकरी के मांस की भारत में बहुत मांग है और कीमत भी अच्छी प्राप्त होती है।
इस प्रकार बकरी पालन में कम लागत से एक अच्छी आय प्राप्त हो जाती है। अगर देखा जाए तो बकरी एक गरीब इंसान की गाय है। बकरी कम आयु में ही वयस्क हो जाती है और एक बार में कम से कम तीन बच्चों को जन्म दे देती है। इनके खाने पर भी ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है ये पत्ते, झाड़ियां और जंगली घास खाकर ही मांस, दूध और कीमती रोयां हमें देती हैं।
बकरी की प्रजातियाँ

पूरी दुनिया में बकरियों की 100 से ज्यादा प्रजातियाँ हैं लेकिन हमारे यहाँ भारत में लगभग 20 प्रजातियां ही पायी जाती हैं। हमारे यहाँ जो नस्लें मुख्य रूप से पाली जाती हैं वह मांस उत्पादन के लिए ही उपयुक्त हैं। पच्छिमी देशों में जो बकरी की प्रजातियाँ पायी जाती हैं वह भारत में पायी जाने वाली बकरियों से अधिक दूध और मांस का उत्पादन किया जाता है।
भारत में बकरी की उपयोगी नस्लें

वैसे तो भारत में बकरियों की लगभग 34 मान्यता प्राप्त प्रजाति हैं लेकिन इसके अलावा भी क्रॉसब्रीडिंग के द्वारा अवैज्ञानिक विधि से भी कई प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं जिन्हें मान्यता प्राप्त नहीं है।
भारत की भौगोलिक और जलवायु परिस्तिथियों के अनुसार हम बकरी पालन के लिए बकरी की नस्लों के हिसाब से चार क्षेत्रों में बाँट सकते हैं जैसे – उत्तर का ठंडा क्षेत्र , उत्तर-पच्छिमी शुष्क या अर्ध शुष्क क्षेत्र, पूर्वोत्तर क्षेत्र और दक्षिणी क्षेत्र।
उत्तरी ठन्डे क्षेत्र में पाली जाने वाली प्रमुख बकरी की नस्लें
ये भारत का पर्वतीय ठंडा क्षेत्र है जिसमे उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर का इलाका और हिमाचल का इलाका आता है। यहाँ बकरी के खाने के लिए कोई अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता है क्योंकि इन क्षेत्रों में इनके पेट भरने के लिए हर मौसम में घास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है। यहाँ बकरियों को विशेष रूप से मांस और पश्मीना रेशे के उत्पादन के लिए पला जाता है और उन्हें बोझा ढोने के काम में भी लिया जाता है। कुछ मुख्य नस्लें यहाँ की निम्न हैं।
गद्दी नस्ल

इस बकरी की प्रजाति का नाम गद्दी जनजाति के नाम पर पड़ा है ये प्रजाति ज्यादातर कुल्लू घाटी, कांगड़ा, चम्बा, शिमला और जम्मू के आस-पास के इलाकों में पायी जाती हैं। इस प्रजाति में नर बोझा ढोने के काम में लाये जाते हैं और मांस और पश्मीना रेशे के लिए इस प्रजाति को यहाँ पाला जाता है।
इस प्रजाति के नर का वजन लगभग 28 kg और मादा का वजन 23 kg के लगभग रहता है। इनके सींग लम्बे होते हैं और वह पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। वैसे तो इनमे काला ओर मिश्रित रंग भी देखने को मिलता है लेकिन ज्यादातर सफ़ेद रंग ही इनमे पाया जाता है। बाल लंबे होते हैं जिनसे कम्बल और रस्सी बनाने का काम लिया जाता है। इसने मांस का उत्पादन अच्छा होता है और अपने दूध देने के पूरे समय में लगभग 50 kg दूध दे देती हैं।
चेगु नस्ल

इस प्रजाति की बकरियां हिमाचल के चम्बा और किन्नौर जैसे क्षेत्रों में पायी जाती हैं। इनका रंग ज्यादातर सफ़ेद होता है लेकिन लाल और भूरा भी रंग देखने को मिलता है। इसे मुख्य रूप से पश्मीना रेशे प्राप्त करने के लिए पाला जाता है। एक साल में 100 ग्राम से 200 ग्राम पश्मीना इनसे प्राप्त हो जाता है। अपने दूध के एक सीजन में ये बकरी 60 से 70 kg दूध तक दे देती हैं। इनके सींग ऊपर की और उठे हुए होते हैं और घुमावदार भी होते हैं। नर का वजन 39 किलोग्राम और मादा का वजन 30 किलोग्राम के आस-पास रहता है।
चांगथांगी नस्ल

चांगथांगी नस्ल की बकरियां जम्मू कश्मीर के लेह, कारगिल और लद्दाख क्षेत्र और हिमाचल की घाटीयों में पाली जाती हैं। इनका नाम लद्दाख क्षेत्र के चांगथांग इलाके के नाम पर पड़ा है। ये बकरियां बहुत ठन्डे तापमान को भी सह सकती हैं और लगभग -40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को भी सह लेती हैं।
इस प्रजाति को पश्मीना रेशे के लिए विशेष रूप से पाला जाता है और यहाँ तक इन्हें पश्मीना बकरी के नाम से भी जाना जाता है। इससे प्राप्त पश्मीना को बाज़ार में अच्छे पैसे में बेचा जाता है और इसकी क्वालिटी भी अच्छी होती है। नर से बोझा ढोने का काम भी लिया जाता है इस प्रजाति की बकरी माध्यम आकर की होती हैं और वजन औसतन 25 kg होता है।
उत्तर-पच्छिमी शुष्क या अर्ध शुष्क क्षेत्र
राजस्थान, पंजाब, गुजरात, मध्य-प्रदेश और पच्छिमी उत्तर-प्रदेश इस क्षेत्र में आते हैं। यहाँ इन बकरी के चारे के लिए सही मात्रा में पेड़-पौधें,झाड़ियाँ आदि आसानी से मिल जाती हैं। ये क्षेत्र बकरी पालन में सबसे आगे है और यहाँ कई प्रकार की नस्लें पाली जाती हैं, जिनमे से कुछ मुख्य नस्लें निम्न हैं –
मारवाड़ी नस्ल

राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, जालौर, नागौर, और पाली के इलाके में मुख्य रूप से इस नस्ल को पाला जाता है। ये माध्यम आकर की तथा शरीर लम्बा होता है और गहरा कला रंग की पायी जाती हैं। कान लम्बे और नीचे की ओर लटके हुए होते हैं, नर बकरे के सींग नुकीले और पीछे की तरफ मुड़े होते हैं।
नर बकरे का वजन 39 किलोग्राम और शरीर बड़ा होता है जबकि मादा बकरी लगभग 30-31 किलोग्राम की पायी जाती हैं और इनका आकर नर से थोड़ा कम होता है। मुख्य रूप से इस नस्ल को मांस और दूध के उत्पादन के लिए पाला जाता है ये प्रजाति अपने एक ब्यात में लगभग 85 किलोग्राम दूध तक दे देती है।
सिरोही नस्ल

राजस्थान की सिरोही जिले के नाम पर इस प्रजाति का नाम पड़ा है ये राजस्थान के सिरोही, उदयपुर, चित्तौरगढ़,राजसमंद, भीलवाड़ा और अजमेर जिले के क्षेत्र में पाले जाती हैं। इनका शरीर बड़ा होता है और ये भूरे रंग में पायी जाती हैं। नर का औसत वजन 42 किलोग्राम और मादा का वजन 35 किलोग्राम के लगभग होता है जिससे पता चलता है की ये आकर में बड़ी प्रजाति है।
राजस्थान की गुर्जर जाति में इसे विशेष रूप से पाला जाता है। इस नस्ल में कान लम्बेयर पतले तथा नीचे की ओर लटके हुए होते हैं। सींग छोटे ओर उपरकी ओर घुमावदार होते हैं। इस नस्ल की खास पहचान इसके गले में नीचे की ओर लटका हुआ मांस होता है। इन बकरियों को मुख्य रूप से मांस ओर दूध के लिए पाला जाता है।
बीटल नस्ल

पंजाब की गुरदास जिले की बटाला तहसील के नाम पर इस प्रजाति का नाम पड़ा है ओर ये प्रजाति मुख्य रूप से पंजाब के गुरदास जिले, अमृतसर और फिरोजाबाद जिले में पाली जाती है। इनका शरीर बड़ा होता है जिसमे नर का वजन औसतन 57 -58 किलोग्राम तक हो जाता है तो वहीँ पर मादा बकरी का औसतन वजन 45 किलोग्राम तक होता हैं।
इनके कान लम्बे और नीचे लटके हुए होते हैं तथा सींग छोटे और मुड़े हुए होते हैं। विशेष रूपसे इस नस्ल को दूध के उत्पादन के लिए पाला जाता है और ये बकरियां अपने एक ब्यात में लगभग 100 से 200 किलोग्राम दूध तक दे देती हैं। मांस के लिए भी इनका पालन किया जाता है।
जमुनापारी नस्ल

जमुनापारी नस्ल का मुख्य क्षेत्र यमुना नदी के आस-पास का क्षेत्र है। ये बड़े आकार की सफ़ेद रंग की बकरी है इन बकरियों के सिर और गले में धब्बे पाए जाते हैं। इनके कान लम्बे और लटके हुए होते हैं तथा इनकी नाक उभरी हुई होती है और बालों के गुच्छे पाए जाते हैं जो रोमननोज कहलाते हैं। इनके सींग चपटे और पीछे की तरफ मुड़े हुए होते हैं।
इनका पेट काफी विकसित होता है और इनके थन भी बड़े आकर के लम्बे और भारी होते हैं। मुख्य रूप से इस नस्ल को दूध के लिए पाला जाता है और इस प्रजाति की बकरियां एक ब्यात में लगभग 200 किलो दूध तक दे देती हैं। मांस के लिए भी इन्हें पाला जाता है।
बरबरी नस्ल

मुख्य रूप से ये उत्तर-प्रदेश के इटावा, हाथरस,एटा, आगरा, मथुरा, और अलीगढ के इलाके में पाली जाती हैं और राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र में भी ये देखने को मिलती हैं। इस प्रजाति को ये नाम इसके मूल स्थान बरबेरिया से मिला है जो पूर्वी अफ्रीका के सोमालिया में है। इन बकरियों का रंग भूरे और कत्थई रंग के धब्बों के साथ सफ़ेद पाया जाता है। और ये मध्यम आकार की होती हैं।
इनके कान छोटेओर ऊपर की ओर होते हैं तथा सींग मध्यम आकार के पीछे की तरफ मुड़े होते हैं। नर बकरे का वजन 36 किलोग्राम तो मादा का वजन 20 किलोग्राम तक होता है दूध ओर मांस के लिए इनका पालन किया जाता है ओर ये बकरी एक ब्यात में 100 किलोग्राम दूध दे देती हैं।
जखराना नस्ल

राजस्थान के अलवर जिले के जखराना गावं के नाम पर इस नस्ल का नाम पड़ा है ओर ये राजस्थान के अलवर जिले के क्षेत्र में पायी जाती हैं। ये बकरियां आकार में बड़ी होती हैं ओर काले रंग में पायी जाती हैं तथा इनके कान ओर मुंह के पास सफ़ेद धब्बे भी पाए जाते हैं। इनका पालन दूध ओर मांस के लिए किया जाता है ओर ये एक ब्यात में 150 किलोग्राम से भी ज्यादा दूध दे देती हैं।
इनका सिर संकरा ओर उठा हुआ होता है ओर कान मध्यम आकार के ओर चपटे होते हैं। इनके सींग भी मध्यम आकार के ओर नुकीले पीछे को मुड़े होते हैं। इनके शरीर बड़ा जिसमे नर का औसतन वजन 60किलोग्राम तक ओर मादा का वजन 45 किलोग्राम तक पाया जाता है।
झालावाडी नस्ल

राजस्थान के सुरेन्द्रनगर और राजकोट के अलावा ये अहमदाबाद, मेहसाणा और भावनगर के इलाके में इस नस्ल की बकरियां पायी जाती हैं। इस नस्ल का नाम भी गुजरात के झालावाड़ के नाम पर पड़ा है जोकि काठियाबाद में है आज इसे ही सुरेंद्रनगर के नाम से जाना जाता है। इनके थन पूरी तरह से विकसित होते हैं और विशेष रूप से इसका पालन दूध के लिए ही किया जाता है। ये एक ब्यात में लगभग 250 से 300 किलोग्राम दूध तक दे देती हैं।
इन नस्ल की बकरियों में कान पतले और लम्बे होते हैं और इनके सींग एक स्क्रू की तरह घुमावदार होते हैं। इनमे नर का औसतन वजन 40 किलोग्राम और मादा का वजन 33 किलोग्राम तक होता है।
कच्छी नस्ल

गुजरात के कच्छ इलाके के नाम पर इस प्रजाति का नाम पड़ा है और ये मुख्य रूप से गुजरात के कच्छ, मेहसाणा, बनासकांठा, और पाटन के इलाकों में पायी जाती हैं। इनका रंग काला और मनहोर कान पर सफ़ेद धब्बे होते हैं। मांस और दूध के लिए इस नस्ल का पालन किया जाता है।
इनके कान लम्बे और नीचे की तरफ लटके हुए होते हैं तथा सींग घुमावदार और मोटे तथा नुकीलापन लिए हुए ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। नर बकरे का औसत वजन 47 और मादा का औसत वजन 40 किलोग्राम तक होता है।
गोहिलवाड़ी नस्ल

गुजरात के काठियावाड़ के अंतर्गत आने वाले गोहिलवाड़ इलाके से इस प्रजाति को नाम मिला है और ये गुजरात के पोरबंदर, जूनागढ़, भावनगर,राजकोट और अमरेली के इलाके में पायी जाती हैं। इस प्रजाति के बाल लम्बे और मोटे होते हैं। इनके सींग मोटे और हलके मुड़े होते हैं तथा कान गिलाई में नीचे की ओर लटके हुए होते हैं।
इस प्रजाति में नर बकरे का औसत वजन 52 किलोग्राम ओर मादा का वजन 42 किलोग्राम तक होता है। मुख्य रूप से दूध ओर मांस के लिए पाली जाने वाली इन बकरियों द्वारा एक ब्यात में 200 से 240 किलोग्राम तक दूध दिया जाता है।
सुरती नस्ल

सुरती नस्ल का नाम गुजरात के सूरत शहर से मिला है, ये बकरियां गुजरात के वड़ोदरा, भरुच, सूरत, नर्मदा ओर नवसारी के इलाके में अधिक पाली जाती हैं। ये मध्यम आकार की नस्ल की बकरी है। ये सफ़ेद रंग की होती हैं ओर ज्यादातर शहरी इलाकों में पाली जाती हैं क्योंकि ये बकरियां ज्यादा नहीं चलती हैं तो शहर में इन्हें ज्यादा नहीं चलना पड़ता है।
ये बकरियां मध्यम आकार की होती हैं और इनके सींग छोटे ओर नीचे की तरफ मुड़े होते हैं, नर बकरी का वजन 29 किलोग्राम तो मादा बकरी का औसत वजन नर से ज्यादा 31 किलोग्राम तक होता है। इन्हें मुख्य रूप से दूध और मांस के लिए पाला जाता है ये बकरियां एक ब्यात में 300 किलोग्राम दूध तक दे देती हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की प्रमुख बकरी की नस्लें
असम, ओडिसा, पच्छिमी बंगाल और बिहार के राज्यों में पाली जाने वाली बकरियों की नस्लें पूर्वोत्तर क्षेत्र में आते हैं यहाँ ज्यादा नमी रहती है। इस इलाके में ज्यादा बकरी की नस्लें नहीं है कुछ प्रमुख यहाँ पाली जाने वाली नस्लें निम्न हैं।
ब्लैक बंगाल नस्ल

ये नस्ल मुख्य रूप से बंगाल में पायी जाती है लेकिन इसके अलावा ये नस्ल बंगाल के सीमावर्ती राज्यों बिहार, असम, ओडिसा, झारखण्ड और त्रिपुरा में भी पायी जाती है। ये बकरी छोटे कद की होती है और काले रंग में पायी जाती हैं लेकिन काले रंग के अलावा ये सफ़ेद और हलकी लाल रंग में देखने को भी मिल जाती हैं।
ये बकरी साल में दो बार बच्चे दे देती हैं और सिर्फ 2 साल की होने पर बच्चे दे देती है। इनके सींग छोटे और ऊपर की तरफ मुड़े होते हैं और ये पीछे की तरफ भी मुड़े हुए हो सकते हैं। नर का औसत वजन 32 और मादा का वजन 20 किलोग्राम होता है। ये एक ब्यात में 100 से 140 किलोग्राम दूध दे देती हैं।
आसाम हिल्स नस्ल

आसाम हिल्स नस्ल की बकरियां आसाम और मेघालय में पायी जाती हैं। इसका रंग सफ़ेद होता है लेकिन काले धब्बे भी देखने को मिलते हैं। इनका शरीर लम्बा लेकिन पैर छोटे होते हैं। सींग बिलकुल सीधे और नुकीले होते हैं और छोटे होते हैं। ये बकरियां एक से डेढ़ साल में बच्चे दे देती हैं।
ये बकरियां दूध न के बराबर देती हैं इसलिए इन्हें मुख्य रूप से मांस के लिए ही पाला जाता है। ये बकरियां केवल एक ब्यात में 10 किलोग्राम दूध ही दे पाती हैं। नर का वजन 20 तो मादा का औसत वजन 18 किलोग्राम ही होता है।
गंजाम नस्ल

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इस नस्ल की बकरियां ओडिसा के समुद्री तटों के दक्षिणी जिलों गजपति, रायागड़ा, खुर्दा, नयागढ़ और गंजाम के इलाकों में पायी जाती हैं। इस बकरी के मुख्य क्षेत्र गंजाम के नाम पर ही इस नस्ल का नाम पड़ा। इस मध्यम आकार की बकरी का रंग काला और भूरा होता है साथ ही भूरे रंग के धब्बे भी इनपर पाए जाते हैं।
इनके सींग लम्बे जो ऊपर की तरफ उठकर नीचे की ओर मुड़े होते हैं ओर कान मध्यम आकार के होते हैं। नर बकरी का औसत वजन 35 किलोग्राम ओर मादा बकरी 29 किलो तक पायी जाती है। इन बकरियों को मुख्य रूप से मांस के लिए पाला जाता है ये एक ब्यात में केवल 60 से 65 किलोग्राम दूध ही दे पाती हैं।
दक्षिणी क्षेत्र बकरी की नस्लें
केरल, कर्नाटक, महाराष्ट, आंध्र-प्रदेश ओर तमिलनाडु का अर्ध शुष्क क्षेत्र में जो बकरियों की नस्ल पाली जाती हैं वह नस्लें अच्छी ओर ज्यादा मांस देने वाली होती हैं।
मालाबारी नस्ल

इस नस्ल की बकरियां केरल के कालीकट ,गन्नौर , वायनाड और मालपुरा के इलाके में मुख्य रूप से पाली जाती हैं। केरल के मालाबार इलाके के नाम पर इस नस्ल का नाम पड़ा है। इस नस्ल की बकरियां मांस और दूध के लिए पाली जाती हैं लेकिन मुख्य रूप से मांस के लिए ही इनका उपयोग होता है। एक ब्यात में ये लगभग 45 किलोग्राम दूध दे देती हैं।
इन बकरियों का रंग काला और सफ़ेद का मिश्रण होता है नर बकरी में उसके मुंह के नीचे एक बालों का गुच्छा दाढ़ी के रूप में लटका रहता है। कान मध्यम आकार के होते हैं और सींग छोटे और पीछे की तरफ मुड़े होते हैं।
संगमनेरी नस्ल

इस नस्ल की बकरियां महाराष्ट के पुणे, नासिक और अहमदनगर के इलाके में पाली जाती हैं। अहमदनगर के संगमनेर जगह के नाम पर इस नस्ल का नाम पड़ा है। मुख्य रूप से ये सफ़ेद रंग की होती हैं लेकिन सफ़ेद रंग के साथ काला और भूरा रंग भी इनमे देखने को मिलता है। ये मध्यम आकार की होती है।
इन बकरियों में बाल छोटेओर खुरदरे होते हैं सींग पीछे को मुड़े हुए होते हैं और इनके कान का आकार मध्यम होता है और वह नीचे को लटके हुए होते हैं। नर का औसत वजन 39 किलोग्राम और मादा का वजन 32 किलोग्राम तक होता है। इस नस्ल को मुख्य रूप से मांस के लिए और दूध के लिए पाला जाता है।
उस्मनाबादी नस्ल

उस्मनाबादी नस्ल की बकरी मुख्य रूप से महाराष्ट के उस्मानाबाद इलाके में पायी जाती हैं और इस क्षेत्र के नाम पर ही इस नस्ल का नाम पड़ा है इसके अलावा इन्हें सोलापुर और अहमदनगर के इलाके में भी देखा जाता है। इस नस्ल के बकरों में सींग पाए जाते हैं लेकिन 50 प्रतिशत मादा बकरियों में सींग नहीं पाए जाते हैं।
इस नस्ल का रंग काला होता है लेकिन काले और सफ़ेद के साथ भूरे रंग के धब्बे भी इनमे पाए जाते हैं। इनके कान मध्यम आकार के होते हैं और इस नस्ल की बकरियां दूसरी नस्ल की बकरियों से ऊँची पायी जाती हैं। ये मुख्य रूप से मांस और दूध के लिए पाली जाती हैं और एक बैयत में लगभग 70 किलो दूध तक दे देती हैं।
बकरी के स्वाथ्य का ध्यान

बकरी पालन की सफलता के लिए बहुत ज़रूरी है बकरियों के स्वाथ्य पर बेहतर तरीके से ध्यान दिया जाए क्योंकि अगर आपकी बकरी स्वथ्य रहेंगी तो आप बकरी पालन से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं इसलिए जब भी आपको किसी भी बकरी के स्वाथ्य में ज़रा सी भी गिरावट दिखाई दे तो बिना किसी देर के पशु-चिकित्सक से मिलें।
बकरी के चारे की वयवस्था

बकरी को स्वथ्य रखने के लिए उसके वजन के 3 से 5 प्रतिशत के बराबर उसे प्रतिदिन शुष्क चारा खिलाएं एक व्यस्क बकरी की खुराक के लिए एक से तीन किलो हरा चारा, 500 ग्राम से 1 किलो तक भूसा, तथा 150 से 400 ग्राम दाना देना चाहिए ,दाने के लिए ध्यान दें दाना सूखा ही दें पानी में मिलाकर न दें और साबुत अनाज न दें।
बकरियों के लिए दाना तैयार करें
दाने में 60 से 65 पतिशत दला हुआ अनाज, 10 से 15 प्रतिशत चोकर, 15 से 20 प्रतिशत खली लेकिन ध्यान दें वह सरसों की न हो तथा उसमे 2 प्रतिशत मिनरल मिक्चर और एक प्रतिशत नमक होना चाहिए। बकरी के प्रजनन के समय से एक माह पहले से ही बकरी को 50 से 100 ग्राम दाना ज़रूर दें इससे मैंने स्वथ्य पैदा होंगे। पानी साफ़ पिलायें रुके और जमा पानी पीने से बकरियों को रोकें।
बकरियों के लिए आवास का इंतज़ाम

बकरियों के लिए आवास के इंतज़ाम के लिए आप लम्बाई वाली दिवार को पूर्व-पच्छिम दिशा में बनायें और इस दीवार को एक से डेढ़ मीटर ऊँची बनाने के बाद उसमे दोनों दीवारों पर जाली लगवाएं। 80 से 100 बकरियों के आवास के लिए बाड़ा 20 ×6 वर्ग मीटर ढका हुआ और 12 ×20 वर्ग मीटर खुला हुआ होना चाहिए जो जालीदार हो।
बाड़े का फर्श रेतीला और कच्चा होना चाहिए। साल में एक या दो बार बाड़े की मिट्टी भी बदल देनी चाहिए और समय-समय पर बिना बुझे चुने का छिड़काव भी करते रहें। बकरा, बकरी और उनके मेमनों को अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए ( ब्याने के एक हफ्ते बाद ) जब मेमनों को दूध पिलाना हो तभी उन्हें बकरी के पास लेकर आएं।
बकरियों में प्रजनन की जानकारी

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यदि आप बकरी पालन के व्यवसाय को सफल बनाना चाहते हैं तो बहुत ज़रूरी है आप निम्न बातों पर ध्यान दें।
1- कम आयु में ही बकरी प्रजनन योग्य हो जाए।
2- प्रति ब्यांत बकरी अधिक से अधिक बच्चे दे।
3- ब्याने के बाद बकरी जल्दी ही दोबारा गर्भ धारण योग्य हो जाए
4- बकरी अपने जीवन काल में अधिक से अधिक बच्चे दे।
बकरी 8 से 12 माह में गर्मी के लक्षण प्रकट करती है लेकिन इस उम्र से और तीन माह बाद ही आप बकरी को गर्भ-धारण करने दें इससे उसके जनन अंग पूरी तरह से विकसित हो चुके होंगे। बकरी हर 18 से 21 दिन में हीट में आ जाती है और ये हीट उसमे 12 से 36 घंटे तक रहती है। हीट में आने पर 12 से 18 घंटे के बाद बकरी को गर्भित कराएं। अनुकूल मौसम में मेमने प्राप्त करने के लिए आप बकरी को मई-जून और अक्टूबर -नवंबर में बकरी को गर्भ-धारण करना चाहिए।
प्रजनन के लिए सही प्रजाति के बकरों का चयन

ये बहुत ज़रूरी है बकरी के गर्भ-धारण के लिए आप जिन बकरों का उपयोग क्र रहे हैं वह शुद्ध नस्ल के हों और पूरी तरह से स्वथ्य हों जिससे आपको मेमनों की एक स्वथ्य और बेहतर नस्ल मिल सके। बकरों में किसी प्रकार का कोई आनुवंशिक रोग न हो और वह देखने में आकर्षक और क्षमतावान भी हों।
मेमनों की देखभाल

मेमनों के जन्म के बाद उनके नथुनों को साफ़ कर दें इससे वह सामान्य प्रकार से सांस ले सकेंगे और जन्म के बाद माँ और बच्चे को दुसरे बाड़े में जो इसके लिए पहले से ही तैयार होना चाहिए ले जाना चाहिए। ब्याने के बाद बच्चे की नाल को दो इंच छोड़कर एक नए ब्लेड से काट देनी चाहिए और उस पर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए।
जन्म के आधे घंटे बाद मेमने को बकरी का पहला दूध पीने दें और कम से कम दो बार दूध पिलायें। मेमने को सूखी घास और मुलायम घास के बिछवां पर रखें। इस प्रकार से आप इन सब बातों का ध्यान और जानकारी रखकर बकरी पालन से अधिक से अधिक सफलता के साथ धन अर्जित करेंगे।
दोस्तों, आपको ये बकरी पालन पोस्ट कैसी लगी हमें कमैंट्स के द्वारा ज़रूर बताएं और हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करना न भूलें। धन्य्वाद,
QUES- एक दिन में बकरी को कितने चारे की आवश्यकता होती है ?
ANS- बकरी को स्वथ्य रखने के लिए उसके वजन के 3 से 5 प्रतिशत के बराबर उसे प्रतिदिन शुष्क चारा खिलाएं एक व्यस्क बकरी की खुराक के लिए एक से तीन किलो हरा चारा, 500 ग्राम से 1 किलो तक भूसा, तथा 150 से 400 ग्राम दाना देना चाहिए ,दाने के लिए ध्यान दें दाना सूखा ही दें पानी में मिलाकर न दें और साबुत अनाज न दें।
QUES- बकरी किस उम्र में पहली बार हीट पर आने के लक्षण प्रकट करती है ?
ANS- बकरी 8 से 12 माह में गर्मी के लक्षण प्रकट करती है लेकिन इस उम्र से और तीन माह बाद ही आप बकरी को गर्भ-धारण करने दें इससे उसके जनन अंग पूरी तरह से विकसित हो चुके होंगे।
QUES- जन्म के कितने घंटे बाद मेमने को बकरी का पहला दूध पीने दें और कितनी बार दूध पिलायें।
ANS- जन्म के आधे घंटे बाद मेमने को बकरी का पहला दूध पीने दें और कम से कम दो बार दूध पिलायें।
QUES- बकरी का दाना घर पर कैसे तैयार करें ?
ANS- बकरी के दाने में 60 से 65 पतिशत दला हुआ अनाज, 10 से 15 प्रतिशत चोकर, 15 से 20 प्रतिशत खली लेकिन ध्यान दें वह सरसों की न हो तथा उसमे 2 प्रतिशत मिनरल मिक्चर और एक प्रतिशत नमक होना चाहिए। बकरी के प्रजनन के समय से एक माह पहले से ही बकरी को 50 से 100 ग्राम दाना ज़रूर दें इससे मैंने स्वथ्य पैदा होंगे। पानी साफ़ पिलायें रुके और जमा पानी पीने से बकरियों को रोकें।
QUES- 100 बकरी के पालने के लिए कितने बड़े आवास की ज़रुरत होती है ?
ANS- 80 से 100 बकरियों के आवास के लिए बाड़ा 20 ×6 वर्ग मीटर ढका हुआ और 12 ×20 वर्ग मीटर खुला हुआ होना चाहिए जो जालीदार हो।